मुनव्वर राना की शायरी हिन्दी मे | 399+ BEST Munawwar Rana Shayari in Hindi

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=> 01 - टॉप Munawwar Rana Shayari in Hindi With Images


ग़ज़ल की सल्तनत पर आजतक क़ब्ज़ा हमारा है

हम अपने नाम के आगे अभी राना लगाते हैं


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ज़्यादा देर तक मुर्दे कभी रक्खे नहीं जाते

शराफ़त के जनाज़े को चलो काँधा लगाते हैं 


*


उगा रक्खे हैं जंगल नफ़रतों के सारी बस्ती में

मगर गमले में मीठी नीम नीम का पौदा लगाते हैं 


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वो शायर हों कि आलिम हों कि ताजिर या लुटेरे हों

सियासत वो जुआ है जिसमें सब पैसा लगाते हैं 



वो शायर हों कि आलिम हों कि ताजिर या लुटेरे हों

सियासत वो जुआ है जिसमें सब पैसा लगाते हैं 


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उन्हीं को सर बुलन्दी भी अता होती है दुनिया में

जो अपने सर के नीचे हाथ का तकिया लगाते हैं 


*


अगर दौलत से ही सब क़द का अंदाज़ा लगाते हैं

तो फिर ऐ मुफ़लिसी हम दाँव पर कासा लगाते हैं 


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हमारी रिश्तेदारी तो नहीं थी हाँ ताल्लुक था, 

जो लक्ष्मी छोड़ आये हैं जो दुर्गा छोड़ आए हैं । 



उधर का कोई मिल जाए इधर तो हम यही पूछें,

हम आँखे छोड़ आये हैं के चश्मा छोड़ आए हैं । 


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जनाबे मीर का दीवान तो हम साथ ले आये,

मगर हम मीर के माथे का कश्का छोड़ आए हैं ।


=> 02 - Munawwar Rana Shayari On Life


उतार आये मुरव्वत और रवादारी का हर चोला,

जो एक साधू ने पहनाई थी माला छोड़ आए हैं । 


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वजू करने को जब भी बैठते हैं याद आता है,

के हम जल्दी में जमुना का किनारा छोड़ आए हैं ।


*


हिमालय से निकलती हर नदी आवाज़ देती थी,

मियां आओ वजू कर लो ये जूमला छोड़ आए हैं । 


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यहाँ आते हुए हर कीमती सामान ले आए,

मगर इकबाल का लिखा तराना छोड़ आए हैं । 



वजारत भी हमारे वास्ते कम मर्तबा होगी,

हम अपनी माँ के हाथों में निवाला छोड़ आए हैं । 


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महीनो तक तो अम्मी ख्वाब में भी बुदबुदाती थीं,

सुखाने के लिए छत पर पुदीना छोड़ आए हैं । 


*


हमारी अहलिया तो आ गयी माँ छुट गए आखिर,

के हम पीतल उठा लाये हैं सोना छोड़ आए हैं । 


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ये हिजरत तो नहीं थी बुजदिली शायद हमारी थी,

के हम बिस्तर में एक हड्डी का ढाचा छोड़ आए हैं । 



भतीजी अब सलीके से दुपट्टा ओढ़ती होगी,

वही झूले में हम जिसको हुमड़ता छोड़ आए हैं । 


-


अभी तक बारिसों में भीगते ही याद आता है,

के छप्पर के नीचे अपना छाता छोड़ आए हैं । 


=> 03 - Rana Munawar Shayari


वो बरगद जिसके पेड़ों से महक आती थी फूलों की,

उसी बरगद में एक हरियल का जोड़ा छोड़ आए हैं ।


-


शकर इस जिस्म से खिलवाड़ करना कैसे छोड़ेगी, 

के हम जामुन के पेड़ों को अकेला छोड़ आए हैं । 


*


कई आँखें अभी तक ये शिकायत करती रहती हैं, 

के हम बहते हुए काजल का दरिया छोड़ आए हैं । 


-


हम अपने साथ तस्वीरें तो ले आए हैं शादी की,

किसी शायर ने लिक्खा था जो सेहरा छोड़ आए हैं ।



गले मिलती हुई नदियाँ गले मिलते हुए मज़हब,

इलाहाबाद में कैसा नज़ारा छोड़ आए हैं ।


-


हमें सूरज की किरनें इस लिए तक़लीफ़ देती हैं,

अवध की शाम काशी का सवेरा छोड़ आए हैं ।


*


सभी त्योहार मिलजुल कर मनाते थे वहाँ जब थे,

दिवाली छोड़ आए हैं दशहरा छोड़ आए हैं ।


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हमें हिजरत की इस अन्धी गुफ़ा में याद आता है,

अजन्ता छोड़ आए हैं एलोरा छोड़ आए हैं ।



हमारे लौट आने की दुआएँ करता रहता है,

हम अपनी छत पे जो चिड़ियों का जत्था छोड़ आए हैं ।


-


यक़ीं आता नहीं, लगता है कच्ची नींद में शायद, 

हम अपना घर गली अपना मोहल्ला छोड़ आए हैं ।


=> 04 - Munawar Faruqui Shayari


जो इक पतली सड़क उन्नाव से मोहान जाती है,

वहीं हसरत के ख़्वाबों को भटकता छोड़ आए हैं ।


-


पकाकर रोटियाँ रखती थी माँ जिसमें सलीक़े से, 

निकलते वक़्त वो रोटी की डलिया छोड़ आए हैं ।


*


किसी की आरज़ू के पाँवों में ज़ंजीर डाली थी,

किसी की ऊन की तीली में फंदा छोड़ आए हैं ।


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अक़ीदत से कलाई पर जो इक बच्ची ने बाँधी थी,

वो राखी छोड़ आए हैं वो रिश्ता छोड़ आए हैं ।



नई दुनिया बसा लेने की इक कमज़ोर चाहत में,

पुराने घर की दहलीज़ों को सूना छोड़ आए हैं ।


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कहानी का ये हिस्सा आज तक सब से छुपाया है,

कि हम मिट्टी की ख़ातिर अपना सोना छोड़ आए हैं ।


*


मुहाजिर हैं मगर हम एक दुनिया छोड़ आए हैं,

तुम्हारे पास जितना है हम उतना छोड़ आए हैं ।


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पेशानी को सजदे भी अता कर मिरे मौला

आँखों से तो यह क़र्ज़ अदा हो नहीं सकता



इस ख़ाकबदन को कभी पहुँचा दे वहाँ भी

क्या इतना करम बादे-सबा हो नहीं सकता


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ऎ मौत मुझे तूने मुसीबत से निकाला

सय्याद समझता था रिहा हो नहीं सकता


=> 05 - मुनव्वर राना शायरी हिंदी Maa


बस तू मिरी आवाज़ में आवाज़ मिला दे

फिर देख कि इस शहर में क्या हो नहीं सकता


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दहलीज़ पे रख दी हैं किसी शख़्स ने आँखें

रौशन कभी इतना तो दिया हो नहीं सकता


*


मिट्टी में मिला दे कि जुदा हो नहीं सकता

अब इससे ज़ियादा मैं तिरा हो नहीं सकता


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उदास रहने को अच्छा न्ही बताता है

कोई भी ज़हेर की मीठा नही बताता है



तलब मे आप को देखा मा की आँखों मे

ये आईना हमे बूढ़ा नही बताता है


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ए अंधेरे देखले मूह तेरा कला हो गया

मा ने आँखे खोल दी घर मे उजाला हो गया


*


बुलंदियो’न का बड़ा से बड़ा निशान छुआ

उठाया गोद मे मा ने तब आसमान छुआ


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किसी को घर मिला हिस्से मे या कोई दुकान आई

मैं घर मे सबसे छोटा था मेरे हिस्से मे मा आई


^


बहुत जी चाहता है क़ैद-ए-जां से हम निकल जाए

तुमाहरी याद भी लेकिन इसी मलबे मे रहती है


-


बहुत जी चाहता है क़ैद-ए-जां से हम निकल जाए

तुमाहरी याद भी लेकिन इसी मलबे मे रहती है


=> 06 - मुनव्वर राना गजल


मेरी खुवाईश है के मैं फिर से फरिश्ता हो जाउ

मा से इस तरह लिपट जाउ की बच्चा हो जाउ


-


कम से कम बच्चों की खुशी के खातिर

ऐसी मिट्टी मे मिलना की खिलौना हो जाउ


*


मुझको हर हाल मे बख़्शेगा उजाला अपना

चाँद रिश्ते मे नही लगता मामा अपना


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मैने रूठे हुए पोछे थे किसी दिन आ’न’सू

मुद्दतओ मा ने नही धोया दुपट्टा अपना


^


उमर भर खाली यूही हमने मका’न रहने दिया

तुम गये तो दूसरे को कब यहा’न रहने दिया


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मैने कल शब चाहतो’न की सब कितबे फाड़ दी

सिर्फ़ एक कगाज़ पे लिखा शब्द मा रहने दिया


*


हंसते हुए मा-बाप की गाली नहीं खाते

बच्चे हैं तो क्यूँ शौक़ से मिट्टी नहीं खाते


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तुम से नहीं मिलने का इरादा तो है लेकिन

तुम से ना मिलेंगे ये क़सम भी नहीं खाते


^


सो जाते हैं फूटपाथ पे अख़बार बिछा कर

मज़दूर कभी नींद की गोली नही खाते


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बच्चे भी घरिबी को समझने लगे शायद

अब जाग भी जाते हैं तो सहरी नही खाते


=> 07 - एक ज़ख़्मी परिंदे की तरह


आज फिर किसी कम्बखत ने माता लक्ष्मी को अपने जिंदगी से निकाल दिया, कूड़ेदान में आज फिर एक मासूम बच्ची मिल गयी.


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इस मैदान-ए-जंग को छोड़कर में मरने से बच तो जाऊंगा, लेकिन अगर यह खबर अखबारों की सुर्खियां बन मेरी माँ के पास पहुंची तो मैं, जीतेजी मर जाऊंगा.


*


उसने जो हमें खत लिखे थे हम उन्हें खुली किताबों में ही छोड़ आये, उसको सुलझाते सुलझाते हम खुद कई उलझनों में फस आये.


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मुन्नवर हम तो उसकी खूबसूरती की एक झलक को देखने आए थे, नजाने कितने मिलों सफर तय करके, लेकिन वो समझे कि हमें मेला बहोत पसंद है.


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सज़ा भी बड़ी दर्दनाक है अपने गांव की मिट्टी को छोड़ जाने की, पहले ज़मीन पर लेटते ही सो जाता था, अब नींद की गोलियां लेने पर भी कभी नींद नहीं आती.


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हमसे गुंडागर्दी करके हमें मोहब्बत करने को कहते हो, नींद तो बहोत आती है लेकिन आंखे खोल कर सोने को कहते हो.


*


मेरी मोहब्बत पे उंगली उठाने से पहले कभी ये तक नहीं सोचा कि, अगर भाते नहीं तो इतना बड़ा रास्ता तुम्हारे साथ कैसे गुजारते.


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मिटाना बहोत ही मुश्किल है उसकी यादों को ज़हन से, मुझे उसकी हर बात याद रहती हैं, जो भी करने की कोशिश करता है हमसे बराबरी उसकी कम्बखत सात पुश्तें बर्बाद रहती हैं.


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जब तक है हाथ में जिंदगी की डोर है तबतक ही इस दुनिया में हमारी पहचान है, वर्ना अनगिनत बार देखा होगा पतंगों को कटते हुए.


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कम्बखत अमीरों की बस्ती में कोई भी रिश्ता नहीं मानता, और ये गरीबी मिलों दूर बसे चाँद को भी अपना मामा बना देती है


=> 08 - राहत इंदौरी शायरी


इस जहां में ये करिश्माई तोहफे से हर औरत नवाजा है, की वो सबकुछ तो भूल जाती है लेकिन अपने बच्चों की पहचान कभी नहीं भूलती.


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हम तो उस धूप में भी तेरी तलाश करते रहें जिस धूप में परिंदे तक नहीं उड़ते.


*


तुम शहरवालों और हम गाँव वालों की सिर्फ इतनी सी कहानी है, तुम अपनों की मय्यत को तक कांधा नहीं देते, और हमैं अपने दुश्मनों की खुशियों में भी अपनी मौजूदगी जतानी हैं.


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बाज़ार में घुसते वक्त माँ कभी खिलौनों की दुकान की और माँ कभी जाने नहीं देती, लेकिन खिलौनों की चाह हमें कभी उस बाज़ार से आगे गुजरने जाने नहीं देती.


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हवाओं में मोहब्बत है, दिल की धड़कन दीवानी है, तेरे बिना खत्म मेरी कहानी है.


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जवान हूं हिंदुस्तान का मैदान ए जंग छोड़कर में बच तो जाऊंगा, लेकिन मुट्ठी भर गद्दारों से डर गया ये सोचकर जी भी नहीं पाऊंगा.


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उसने जो जाम अपनी आँखों से पिलाये थे, हम अपना दिल उसी जगह छोड़ आये, अब भी वक्त है मुझे रोक लो ज़मानेवालों, मोहब्बत में काफी बर्बाद हो चुका हूं में, कहीं उसके इंतज़ार में बची हुई ज़िन्दगी भी खत्म न हो जाये.


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उसे देखकर मेरा पूरा दिन बन जाता है, एक वही है जो मेरी सुनी नींदों को अपने ख्वाबों से सजाता है, में कभी कहता नहीं लेकिन उससे बिछड़कर दिल अक्सर मर सा जाता है.   


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कुछ पड़ोसी मुल्क आँखें दिखाते है तो उन्हें शौक से दिखाने दो, गीदड़ की दुआओं से कभी शेर नहीं मरा करते.


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मोहब्बत में धोका ही मिले ये तो जरूरी नहीं कुछ रिश्ते बिना इजहार के चंद पलों में ही जिंदगानी जाते है.


=> 09 - मैं लोगों से मुलाकातों के लम्हे याद रखता हूँ Rekhta


हवस की आग में इंसान अक्सर जानवर बन जाता है, पता नहीं ये कम्बखत अपनी माँ बहन को खुदसे कैसे बचाता है..


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मोहब्बत की लेकिन महफ़िल में मज़ाक बनकर रह गए, उन्होंने हमसे बेवफाई की लेकिन वो अच्छे इंसान रह गए.


*


इंसान की दरिंदगी का हरजगह सबूत मिल जाता है, जब किसी सीधी साधी लड़की की आबरू से कोई बनकर दरिंदा खेल जाता है.


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एक बडीही करिश्माई चीज़ औरतों में मौजूद रहती है, वो भलेही सारी दुनिया भूल जाये लेकिन उसके बच्चों की तस्वीर हमेशा उसके दिलमें छपी होती है.


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किस्सा-ए-मोहब्बत में आखिर में क्या होता है, सीधा साधा आदमी जो एक आशिक बनकर तबाह होता है


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कभी हंसाता तो कभी बहोत रुलाता है, दौर ए मोहब्बत का इंसान से बहोत कुछ करवाता है


*


वो शख्स बडाही खुशकिस्मत होता है, जो थका हारा अपनी मा के आंचल में सर रख कर सोता है.


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लोग मतलब है तबतक ही साथ मौजूद होते है, और जब आती है कोई मुसीबत तब सभी अपने पहोंच से दूर खड़े हुए मिलते हैं


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तुम्हारे हर जिक्र पर एक नया जख्म सामने आ जाता है, है पाने का जुनून इसलिए जिंदा हूं, लेकिन बिना तेरी मौजूदगी के अंदर का आशिक पल पल मरता जाता है.


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जब कभी लगता हूँ मैं अपनी माँ के गले मेरी हर रग मुस्कुराती है, उसके बिना सबकुछ होकर भी कुछ अच्छा नहीं लगता, लेकिन जब वो सामने होती है तब मुझे सारी दुनिया मिल जाती है.


=> 10 - बचपन मुनव्वर राना


मेरे साथ रहकर अगर खुशी ना मिले तो बेशक मुझे उसी मोड़ पर छोड़ देना, लेकिन खुदा के लिए बेवफाई कर दोहरी जिंदगी कभी मत जीना.


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सच्चे प्यार की मूरत और लाखों कुर्बानियां देखी है, मैंने जन्नत तो नहीं देखी लेकिन माँ देखी है.


*


बिना किसी उम्मीद के उसकी तलाश कर रहां हूं, नजाने में आखिर कैसी जिंदगी को जी रहां हूं.


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बिना कुछ कहें हमारे जज़्बातों को समझेगा, जिंदगी में अगर बहनें ही नहीं होंगी तो आखिर हमें राखी कौन बांधेगा.


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खुशी से जिंदगी जीता है हर पल मुस्कुराता है, जो जिंदगी में कभी मोहब्बत नहीं करता वो हमेशा आबाद रहता है.


-


जहां दिल भर जायें ठीक वहीं से मुझसे रिश्ता तोड़ चले जाना, लेकिन कभीभी साथ रहकर मुझसे बेवफाई ना करना.


*


जितनी शिकायतें इस कम्बखत जमाने को हमसे है, उतनी बुराइयां तो हममें नहीं


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अच्छा लगता है उसके इंतजार में खुदको झूठी तस्सली देना, तस्सली झूठी ही सही लेकिन दिल को राहत दे जाती है.


^


हर शक्स में उसका अक्स दिखाई देता है, शायद उसने मेरी नजर को बांध रखा है.


-


रोते वक्त भी मुस्कुराना अच्छा लगता है, जब साथ होती है माँ तब मुसिबतों का पहाड़ भी बच्चा लगता हैं


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