बुल्ले शाह की शायरी हिन्दी मे | 199+ BEST Bulleh Shah Shayari in Hindi

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=> 01 - टॉप Bulleh Shah Shayari in Hindi With Images


बुतखाने #झूठी शान है इक धोखा है वहां

मस्जिद मे बस मलाल है नही_मौका है जहां

टटोलिये #खुद मे खुदा को भटके हो तुम कहाँ

आईये लौटकर करीब #दिल के शुकूं रहता है वहाँ.


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चढ़दे "सूरज" ढलदे देखे,

बुझदे दीवे "बलदे" देखे ।

हीरे दा कोइ मुल ना जाणे,

खोटे #सिक्के चलदे देखे ।


*


चढ़दे "सूरज" ढलदे देखे,

बुझदे दीवे "बलदे" देखे ।

हीरे दा कोइ मुल ना जाणे,

खोटे #सिक्के चलदे देखे ।


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"मनतक" मअने कन्नज़ कदूरी,

मैं पढ़ पढ़ इलम #वगुच्ची कुड़े,

मैनूं दस्सो पिया दा देस।”



'बर्तन' खाली हो तो ये मत समझो की #मांगने चला है ! 

हो सकता है सब_कुछ बाट के आया हो।”


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#नमाज़ रोज़ा ओहनां की करना,

जिन्हां प्रेम सुराही_लुट्टी कुड़े,

मैनूं 'दस्सो' पिया दा देस।”


*


इकना आस 'मुड़न' दी आहे, इक सीख_कबाब चढ़ाइयां ।। 

#बुल्लेशाह की वस्स ओनां, जो मार "तकदीर" फसाइयां ।। 


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रंग बड़े "सुर्ख" होय ने.. पर होया नहीं #फकीरी ते अबीर दा..

सुफी़ #मुर्शिद बड़े होये ने.. पर होया नहीं बुल्ले_शाह दी नजीर दा...



हाथ_जोड़ कर पाँव पडूँगी "आजिज़" होंकर बिनति #करुँगी झगडा कर भर झोली लूंगी, 

नूर मोहम्मद_सल्लल्लाह होरी खेलूंगी कह कर "बिस्मिल्लाह"


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जब न "मंदिर" थे न मस्जिद थीं न #गिरजाघर कहीं तब हर जगह इंसान थे, सब के एक #भगवान थे।।


=> 02 - Bulleh Shah Shayari in Hindi Font


बुल्ल्हा शौह दी #मजलस बह के,

सभ_करनी मेरी छुट्टी कुड़े,

मैनूं दस्सो #पिया दा देस।


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बुत-ख़ाना तोड़_डालिए मस्जिद को ढाइए #दिल को न तोड़िए ये ख़ुदा का मक़ाम है


*


बुत-ख़ाना तोड़_डालिए मस्जिद को ढाइए #दिल को न तोड़िए ये ख़ुदा का मक़ाम है


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#गुस्से विच ना आया कर, "ठंडा" कर के खाया कर

दिन तेरे भी_फिर जाएंगे , ऐसे ना #घबराया कर



बुल्ले नूं "समझावण" आइयां 

भैणां ते भरजाइयां 

मन लै बुल्लया, 

साडा_कहना छड़ दे पल्ला_राइयां 

आल नबी, 'औलाद' अली नूं तूं क्यों लीकां लाइयां? 


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राह से गुजरते हुए #रोज़ादार 'मुसलमानों' ने कहा : 

तुम्हें #शर्म नहीं आती, रमज़ान के "महीने" में गाजरें चर रहे हो


*


दिल नू लगे_रोन तो की करिए

किसी के याद विच "अखिया" रोन तो की करिए

सानू दी #मिलन दी आस रहती है हर वेड़े बुल्लेया

अगर यार ही भूल_जाड़ तो की करिए


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ओ बुल्ले_शाह, ज़हर वैख के 'पीता' ते के पीता ? 

इश्क़ सोच के 'कीता' ते के कीता? 

दिल दे के , दिल_लेन दी आस रखी? 

प्यार इहो_जिया कीता, ते के कीता 



मुँह #दिखलावे और छुपे छल-बल है जगदीस 

पास रहे हर न मिले इस को_बिसवे बीस 

जहर #वेख के पीता.. ते की पीता..?

इश्क़ "सोच" के कीता.. ते की कीता..?

दिल दे के दिल_लेैन दि आस राखी वे बुल्लेया...

प्यार वी 'लालच' नाल कीता ते की कीता..?


-


इश्क "हकीकी" ने मुट्ठी कुड़े,

मैनूं दस्सो #पिया दा देस ।


=> 03 - बुल्ले शाह के दोहे


रांझा_रांझा करदी नी मैं आपे रांझा होई_रांझा मैं विच, 

मैं रांझे विच, होर 'खयाल' न कोई नी मैं कमली हां”


-


जिस_तरह चाहे नचा ले 

तू इशारे पे मुझे ऐ #मालिक 

तेरे ही लिखे हुए 'अफ़साने' का 

#किरदार हूँ मैं 


*


#बुल्ला कसर नाम कसूर है, ओथे 'मूँहों' ना सकण बोल । 

ओथे सच्चे गरदन_मारीए, ओथे #झूठे करन कलोल ।।


-


जहर देख के #पिता ते की किता, इश्क "शोच" के किता ते की किता

दिल दे के 'दिल' लेण दी आस रखी, वे बुल्ल्या

प्यार वी #लालच नाल किता, ते की किता



जहर देख के #पिता ते की किता, इश्क "शोच" के किता ते की किता

दिल दे के 'दिल' लेण दी आस रखी, वे बुल्ल्या

प्यार वी #लालच नाल किता, ते की किता


-


*कोई हिर कोई 'रांझा' बना है, इश्क़ वे विच #बुल्लेशाह हर कोई फरीर क्यों बना है.*


*


जिस तरह चाहे नचा ले 

तू इशारे पे मुझे ऐ मालिक 

तेरे ही लिखे हुए अफ़साने का 

किरदार हूँ मैं 


-


कोई हिर कोई 'रांझा' बना है, इश्क़ वे विच, बुल्लेशाह हर कोई फरीर क्यों बना है



गरूर ना कर शाह ए शरीर का तेरा भी खाक होगा मेरा भी खाक होगा.


-


जहर देख के पिता ते की किता, इश्क शोच के किता ते की किता

दिल दे के 'दिल' लेण दी आस रखी, वे बुल्ल्या

प्यार वी लालच नाल किता, ते की किता


=> 04 - बुल्ले शाह के भजन


बुल्ले नूं समझावण आइयां

भैणां ते भरजाइयां

मन लै बुल्लया,

साडा कहना छड़ दे पल्ला राइयां

आल नबी, 'औलाद' अली नूं तूं क्यों लीकां लाइयां


-


इकना आस मुड़न दी आहे, इक सीख कबाब चढ़ाइयां ।। बुल्लेशाह की वस्स ओनां, जो मार तकदीर फसाइयां ।। 


*


आई रुत्त शगूफ़यां वाली, चिड़ियां चुगण आइयां । इकना नूं जुर्रयां फड़ खाधा, इकना फाहीआं लाइयां ।। 


-


बुल्लया वारे जाइए ओहनां तों, जेहड़े मारन गप-शड़प्प । कौड़ी लब्भी देण चा, ते बुगचा घाऊं-घप्प ।। 



बुल्लया मैं मिट्टी घुमयार दी, गल्ल आख न सकदी एक ।। तत्तड़ मेरा क्यों घड़या, मत जाए अलेक-सलेक।। 


-


भगवा भी है रंग उसका सूफी भी, इश्क की होती है ऐसी खूबी ही।


*


उनकी वज़ाहत क्या लिखूँ, जो भी है बे-मिसाल है वो, एक सूफ़ी का तसव्वुर, एक आशिक़ का ख़्याल है वो।


-


मैंने पाया है, हाँ तुम्हें पाया है,

तुमने अपना रूप बदल लिया है।

कहीं तो तुम तुर्क़ बनकर ग्रन्थ पढ़ते हो और कहीं हिन्दू बनकर भक्ति में डूबे हो

कहीं लम्बे घूँघट में स्वयं को छुपाए रहते हो।

तुम घर-घर जाकर लाड़ लड़ाते हो।



.गरूर ना कर शाह ए शरीर का तेरा भी खाक होगा मेरा भी खाक होगा।।


-


बुल्ला कसर नाम कसूर है, ओथे मूँहों ना सकण बोल

ओथे सच्चे गरदन मारीए ओथे झूठे करन कलोल।।


=> 05 - बाबा बुल्ले शाह शायरी पंजाबी


गुस्से विच ना आया कर, ठंडा कर के खाया कर

दिन तेरे भी फिर जाएंगे ऐसे ना घबराया कर।।


-


.आपने ज्ञान की हजारों किताबें पढ़ी होगी, लेकिन क्या आपने कभी खुद को ‘पढ़ने’ की कोशिश की है।।


*


बुत ख़ाना तोड़ डालिए मस्जिद को ढाइए दिल को न तोड़िए ये ख़ुदा का मक़ाम है।।


-


जब न मंदिर थे न मस्जिद थीं न गिरजाघर कहीं तब हर जगह इंसान थे, सब के एक भगवान थे।।



इकना आस ‘मुड़न दी आहे, इक सीख कबाब चढ़ाइयां बुल्लेशाह की वस्स ओनां, जो मार तकदीर फसाइयां।।


-


इह अगन बिरहों दी जारी, कोई हमरी प्रीत निवारी, बिन दरशन कैसे तरीए ? अब लगन लगी किह करीए?


*


ना हम हिन्दू ना तुर्क ज़रूरी, नाम इश्क दी है मनज़ूरी, आशक ने वर जीता, ऐसा जग्या ज्ञान पलीता।।


-


ना हम हिन्दू ना तुर्क ज़रूरी, नाम इश्क दी है मनज़ूरी, आशक ने वर जीता, ऐसा जग्या ज्ञान पलीता।।



ऐन गैन दी हिक्का सूरत, हिक्क नुकते शोर मचाया ए। इक नुकता यार पढ़ाया ए।।


-


बुल्ल्हा शौह दी मजलस बह के, सभ करनी मेरी छुट्टी कुड़े , मैनूं दस्सो पिया दा देस।।


=> 06 - सूफ़ियाना कलाम बाबा बुल्ले शाह कविता


बुल्ल्हा शौह दी मजलस बह के, सभ करनी मेरी छुट्टी कुड़े , मैनूं दस्सो पिया दा देस।।


-


बुल्ल्हा शौह दी मजलस बह के, सभ करनी मेरी छुट्टी कुड़े , मैनूं दस्सो पिया दा देस।।


*


जिस तरह चाहे नचाले तेरे इशारो पे ऐ मालिक मुझे तेरे ही लिखे हुए अफ़साने की किरदार हु मै।।


-


.जिस तरह चाहे नचाले तेरे इशारो पे ऐ मालिक मुझे तेरे ही लिखे हुए अफ़साने की किरदार हु मै।।


^


ज़हर वैख के पीता ते के पीता? इश्क़ सोच के कीता ते के कीता? दिल दे के, दिल लेन दी आस रखी? प्यार इहो जिया कीता, ते के कीत।।


-


ज़हर वैख के पीता ते के पीता? इश्क़ सोच के कीता ते के कीता? दिल दे के, दिल लेन दी आस रखी? प्यार इहो जिया कीता, ते के कीत।।


*


ना मस्जिद में ना मंदिर मे, ढूंढ अपने यार को अपने अंदर मे।।


-


मनतक मअने कन्नज़ कदूरी, मैं पढ़ पढ़ इलम वगुच्ची कुड़े, मैनूं दस्सो पिया दा देस।।


^


बुल्ल्हा कसर नाम कसूर है, ओथे मूंहों ना सकन बोल । ओथे सच्चे गरदन मारीए, ओथे झूठे करन कलोल।।


-


आओ सईयो रल दियो नी वधाई आयो सईयो रल दियो नी वधाई । मैं वर पाइआ रांझा माही


=> 07 - काफ़ियाँ बुल्ले शाह


तुम सुनो हमारी बैना, मोहे रात दिने नहीं चैना, हुन पी बिन पलक ना सरीए । अब लगन लगी किह करीए ?


-


इह अगन बिरहों दी जारी, कोई हमरी प्रीत निवारी, बिन दरशन कैसे तरीए ? अब लगन लगी किह करीए ?


*


बुल्ल्हे पई मुसीबत भारी, कोई करो हमारी कारी, इक अजेहे दुक्ख कैसे जरीए ? अब लगन लगी किह करीए?


-


ना हम हिन्दू ना तुर्क ज़रूरी, नाम इश्क दी है मनज़ूरी, आशक ने वर जीता, ऐसा जग्या ज्ञान पलीता।


^


ना हम हिन्दू ना तुर्क ज़रूरी, नाम इश्क दी है मनज़ूरी, आशक ने वर जीता, ऐसा जग्या ज्ञान पलीता।


-


सस्सी दा दिल लुट्टण कारन, होत पुनूँ बण आया ए। इक नुकता यार पढ़ाया ए।


*


मैना मालन रोंदी पकड़ी, बिरहों पकड़ी करके तकड़ी, इक मरना दूजी जग्ग दी फक्कड़ी, हुन कौन बन्ना बण आइयो रे ; अब क्यों साजन चिर लाययो रे


-


सस्सी दा दिल लुट्टण कारन, होत पुनूँ बण आया ए। इक नुकता यार पढ़ाया ए।


^


ऐन गैन दी हिक्का सूरत, हिक्क नुकते शोर मचाया ए। इक नुकता यार पढ़ाया ए।


-


नमाज़ रोज़ा ओहनां की करना, जिन्हां प्रेम सुराही लुट्टी कुड़े, मैनूं दस्सो पिया दा देस ।


=> 08 - बुल्ले शाह रेख़्ता


बुल्ल्हा शौह दी मजलस बह के, सभ करनी मेरी छुट्टी कुड़े , मैनूं दस्सो पिया दा देस ।


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अब लगन लगी किह करिए अब लगन लगी किह करिए ? ना जी सकीए ते ना मरीए ।


*


जिस तरह चाहे नचाले तेरे इशारो पे ऐ मालिक मुझे तेरे ही लिखे हुए अफ़साने की किरदार हु मै।


-


जिस तरह चाहे नचाले तेरे इशारो पे ऐ मालिक मुझे तेरे ही लिखे हुए अफ़साने की किरदार हु मै।


^


ज़हर वैख के पीता ते के पीता? इश्क़ सोच के कीता ते के कीता? दिल दे के, दिल लेन दी आस रखी? प्यार इहो जिया कीता, ते के कीता।


-


ज़हर वैख के पीता ते के पीता? इश्क़ सोच के कीता ते के कीता? दिल दे के, दिल लेन दी आस रखी? प्यार इहो जिया कीता, ते के कीता।


*


ज़हर वैख के पीता ते के पीता? इश्क़ सोच के कीता ते के कीता? दिल दे के, दिल लेन दी आस रखी? प्यार इहो जिया कीता, ते के कीता।


-


ना मस्जिद में ना मंदिर मे, ढूंढ अपने यार को अपने अंदर मे।


^


मनतक मअने कन्नज़ कदूरी, मैं पढ़ पढ़ इलम वगुच्ची कुड़े, मैनूं दस्सो पिया दा देस।


-


उसदे नाल यारी कदी ना रखियो, जिसनु अपने ते गुरूर होवे, माँ बाप नू बुरा न आखियो, चाहे लख ऊना दा कुसूर होवे, राह चलदे नू दिल न देइयो, चाहे लख चेहरे ते नूर होवे, ओ बुलेया दोस्ती सिर्फ उथे करियो, जिथे दोस्ती निभावन दा दस्तूर होवे।


=> 09 - सूफी इश्क शायरी


बुल्ले नूं समझावण आइयां भैणां ते भरजाइयां मन लै बुल्लया, साडा कहना छड़ दे पल्ला राइयां आल नबी, औलाद अली नूं तूं क्यों लीकां लाइयां?


-


बुल्ले नूं समझावण आइयां भैणां ते भरजाइयां मन लै बुल्लया, साडा कहना छड़ दे पल्ला राइयां आल नबी, औलाद अली नूं तूं क्यों लीकां लाइयां?


*


बुल्ल्हा कसर नाम कसूर है, ओथे मूंहों ना सकन बोल । ओथे सच्चे गरदन मारीए, ओथे झूठे करन कलोल।


-


आओ सईयो रल दियो नी वधाई आयो सईयो रल दियो नी वधाई । मैं वर पाइआ रांझा माही।


^


हीर और राँझा का मिलन हो गया।

हीर तो उसे ढूँढ़ने के लिए भटकती रही

किन्तु प्रियतम राँझा तो उसकी बगल में ही खेल रहा था

मैं तो अपनी सब सुध-बुध खो बैठी थी।


-


कई पैरां तो नंगे फिरदे, सिर ते लभदे छावां,

मैनु दाता सब कुछ दित्ता, क्यों ना शुकर मनावां!


*


लोकी कैंदे दाल नइ गलदी, मैं ते पथर गलदे देखे।

जिन्हा ने कदर ना कीती रब दी, हथ खाली ओ मलदे देखे


-


जिना दा न जग ते कोई, ओ वी पुतर पलदे देखे।

उसदी रहमत दे नाल बंदे, पाणी उत्ते चलदे देखे!


^


चढ़दे सूरज ढलदे देखे, बुझदे दीवे बलदे देखे

हीरे दा कोइ मुल ना जाणे, खोटे सिक्के चलदे देखे


-


रब्ब दा खोज खुरा ना लभ्भा अते सज्जदे कर कर हारे,

रब्ब ते तेरे अन्दर वस्सदा इहदे विच कुरान इशारे,

बुल्ल्हे शाह रब्ब उहनूं मिलदा जेहड़ा अपने नफस नु मारे।


=> 10 - गुलाम फरीद की शायरी


भुला आप फिरे बोले बाहर उसनू, वांगू मुर्गिया दें कूड़ा फोलदा ई,

भला बुझ हां केड़ा विच है तेरे, शायद ओ ही होवे जेनू तू तौल दा ई,

बुल्ला शाह जुदा नहीं रब ते थों, आपे वाज मारयां ते बोलदा ई।


-


विच्च मसीतां धक्के मिलदे, मुल्लां त्यूड़ी पाए,

दौलतमन्दां ने बूहआं उत्ते, रोबदार बहाए,

पकड़ दरवाज़ा रब्ब सच्चे दा,जित्थों दुक्खदिल दा मिट जाए,


*


छोड़ मसीत ते पकड़ किनारा, तेरी छुट्टसी जान अज़ाबों,

उह हरफ़ ना पड़्हीए मत , रहसी जान जवाबों,

बुल्ल्हे शाह चल ओथे चलीए, जित्थे मन्हा ना करन शराबों।


-


इकना नूं जुर्यां लै खाधा, इकना नूं फाहियां लाईआं,

इकना नूं आस मुड़न दी आही, इक सीख कबाब चड़्हाईआं,

बुल्ल्हे शाह की वस्स उन्हां दे, उह किसमत मार वसाईआं।


^


तूं वार दे हर शै यार अपने तों जे जित्तनी इशक दी बाज़ी,

यार दे नां दी तूं नीत खलो जा तैनूं आखन इशक नमाज़ी,

तेरा यार कहे जे तूं घुंगरू पा लै भावें फ़तवे लावे काज़ी,

बुल्ल्हे शाह जग्ग रुसदा रुस्स जावे पर असां यार नूं रक्खना एं राज़ी।


-


तूं वार दे हर शै यार अपने तों जे जित्तनी इशक दी बाज़ी,

यार दे नां दी तूं नीत खलो जा तैनूं आखन इशक नमाज़ी,

तेरा यार कहे जे तूं घुंगरू पा लै भावें फ़तवे लावे काज़ी,

बुल्ल्हे शाह जग्ग रुसदा रुस्स जावे पर असां यार नूं रक्खना एं राज़ी।


*


मैं ग्या सां इशक सुदागरे वन्न, अग्गों इशक ने मेरी रसई लुट्ट लई,

इशक लुटदा वलियां पैग़म्बरां नूं, कईआं बादशाहां दी बादशाही लुट्ट लई,

अजे तेरा की लुट्ट्या ऐ बुल्हआ, ऐस इशक ख़ुदा दी ख़ुदाई लुट्ट लई।


-


आपने तन दी ख़बर ना काई, साजन दी ख़बर ल्यावे कौण,

ना हूं ख़ाकी ना हूं आतश , ना हूं पानी पउन,

कुप्पे विच रोड़ खड़कदे , मूरख आखन बोले कौन,

बुल्ल्हा साईं घट घट रव्या, ज्युं आटे विच लौन।




^


ओथे तां मेरी प्रवरिश कीती, जित्थे किसे नूं ख़बर ना काई,

ओथों तांहीं आए एथे , जां पहलों रोज़ी आई,

बुल्ल्हे शाह है आशक उसदा, जिस तहकीक हकीकत पाई।


-


ओथे तां मेरी प्रवरिश कीती, जित्थे किसे नूं ख़बर ना काई,

ओथों तांहीं आए एथे , जां पहलों रोज़ी आई,

बुल्ल्हे शाह है आशक उसदा, जिस तहकीक हकीकत पाई।


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